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रविवार, 1 जनवरी 2017

कुल्लू मनाली यात्रा तीसरी बार भाग 1

DJK TEAM
 दोस्तों जब हम तीसरी बार मनाली गए थे तो इस बार हमने बस में यात्रा की वो भी दिल्ली से मनाली के लिए HRTC (हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन) की बस में।
मनाली जाने का प्रोग्राम बनाने पहले हमने वहाँ जाने के लिए कुछ जानकारियाँ इकट्ठा की , जैसे की मौसम कैसा है वहाँ का , बस से जाने  में कितना टाइम लग रहा है वो भी किराये के साथ आदि।
फिर HRTC की वेबसाइट पर गए और तीन टिकट बुक कर ली वो भी सेमी-स्लीपर की। ऑनलाइन बुकिंग करने में आप अपनी मन पसंद की सीट चुन सकते हैं। हमने रात में जाने वाली गाड़ी को चुना जो की हमें अगले दिन लगभग 10 बजे तक पहुंचा रही थी।  अब क्या था अपना सामान पैक किया और निकल पड़े मनाली के लिए।
हम बस के चलने के टाइम से 1 घण्टे पहले ISBT कश्मीरी गेट पहुँच गए जहाँ से हमको बस में चढ़ना था। हमने वहां पहुँच कर थोड़ा इंतज़ार किया और बस अपने चलने के टाइम से आधे घण्टे पहले अपने स्थान पर खड़ी हो गयी।
अब हम गाड़ी में बैठे और चल दिए अपनी मंज़िल की ओर , गाड़ी की सीट पीछे की और सो गए कुछ देर के लिए , रात करीब 11 बजे बस एक ढाबे पर खाना खाने के लिए रुकी , जिनको भूख लगी थी वो गए खाना खाने के लिए हम भी चल दिए परन्तु हमने वह पर खाना नहीं खाया क्योंकि हम घर से खाना खाकर निकले थे और हमें भूख भी नहीं लग रही थी।  भाई ने कहा कि एक एक चाय हो जाए तो हमने कहा की कर दो 3 चाय का ऑर्डर , वेटर आया और तीन चाय का ऑर्डर दिया गया। चाय पी और थोड़ा टहल कर वापस बस में बैठ गए।  अब बस चल दी और कुछ देर में लगभग सारे यात्री सो गए अब हम भी क्या करते कुछ देर फ़ोन चलाया और फिर नींद आने लगी और मैं भी सो गया भाई और दीपिका जी पहले ही सो चुके थे , वैसे तो बीच-बीच में जागकर बाहर देख लेते थे परन्तु पूरी तरह से तो सुबह ही आँख खुली जब बस मंडी को पार कर चुकी थी।  अब नज़ारे भी बहुत अच्छे अच्छे आ रहे थे ,सुन्दर पहाड़ मन को मोह रहे थे और गहराई भी बहुत थी यहाँ पर , नीचे व्यास नदी बह रही थी।
मंडी से आगे व्यास नदी पर एक बांध बना हुआ है।



ये जितेंद्र कुमार जी है जो आगे की सीट पर बैठे है. 
हम तीनो टाटा AC बस में बैठे है और बराबर में हम व्यास नदी को देख रहे है । 
इस समय ये बस बांध को पार कर रही जो जो व्यास नदी पर बना हुआ है। 
जिस साइड मैं देख रहा हुईं यहाँ पर बहुत सारा पानी इकट्ठा हुआ पड़ा है।  क्या सुन्दर नज़ारे है यहाँ के वाह मन खुश हो गया। 


सबसे खतरनाक रास्ता है ये 
सीधे हाथ पर नदी जो बहुत गहराई में है और उल्टे हाथ पर पहाड़ , बहुत खतरनाक रास्ता है ये। 



व्यास नदी और पहाड़ 




ये है पहाड़ों का नज़ारा 


पहाड़ी रास्ता दिल्ली से मनाली के लिए 


आगे के रास्ते में तेज़ मोड़ है और ऊपर से पत्थर भी गिरने का डर है । 
चेतावनी बोर्ड से बहुत सहायता मिलती है यहाँ पर 


क्या विचित्र नज़ारा है 



वो देखो सामने से आती हुई एक कार 



मन्दिर पर नज़र डालो जरा, क्या कलाकारी है हमारे हिंदुस्तान में 


जय माता दी 


















अब हम पहुँच गए थे मनाली में , बस से उतरकर सीधे होटल हाईवे इन में गए और फैमिली रूम बुक कर लिया। 
वैसे तो बस से उतरते ही बहुत सारे एजेंट्स वहाँ पर आ गए थे होटल बुक करवाने के लिए परन्तु हम पिछले 2 बार से उसी होटल में रुक रहे थे तो हम उसी होटल में गए। 
जैसे ही हम होटल गए तो होटल वालो ने हमें पहचान लिया और हाल चाल भी पूछा। 
ये होटल (Hotel Highway Inn , Manali) बस स्टैण्ड के पास में ही है और इसका रेंट भी नॉर्मल है।  होटल की सर्विस बहुत अच्छी है इसलिए हम यही पर रुकते है। रूम मिला तो नहा कर फ्रेश हो गए , कुछ खाना ऑर्डर किया और फिर थोड़ी देर आराम किया। 
अब शाम हो चुकी थी तो सोचा थोड़ा लोकल मार्किट में ही घूम लिया जाये। यहाँ पर मॉल रोड पर मार्किट है  और हाँ यहाँ पर आपको सामान भी बहुत महंगा मिलता है। दिल्ली और मनाली के रेट में आपको 3 गुना का अंतर देखने को मिल सकता है।  शाम के समय मॉल रोड पर रौनक आ जाती है , चारो ओर लोगो की चहलकदमी नज़र आ रही थी। ठण्डे मौसम में टहलने का मज़ा ही कुछ ओर होता है। थोड़ी दूर नज़र आने वाली पहाड़ी की चोटी बर्फ से लदी हुयी नज़र आ रही थी।  यहाँ पर हमेशा बर्फ रहती है। 
घूमने के बाद होटल वापस गए और वहां पर रोहतांग जाने के बारे में पता किया तो हमें पता चला की रोहतांग जाने के लिए परमिशन नहीं है  क्योंकि ऊपर बर्फ अभी ज्यादा है और वहाँ पर बर्फ की वजह से पार्किंग की जगह भी नहीं है इसलिए गाड़ी अभी मढ़ी तक ही जा रही है। मढ़ी से रोहतांग 15 KM दूर है , अब से पहले 2 बार हम यहाँ जा चुके थे। अब मनाली आये है तो बर्फ के मज़ा भी लेंगे इसलिए भाई ने मढ़ी के  लिए गाड़ी बुक करा ली। इस बार हम मढ़ी (रोहतांग पास) के लिए शेयरिंग में गए थे।  
यहाँ पर शेयरिंग (Sharing) का मतलब है कि एक गाड़ी में अन्य लोग भी साथ जायेंगे , पहले हम अलग से जा चुके थे सोचा अब शेयरिंग में भी जाकर देख लें। गाडी बुक करावा कर हम सो गए और अगले दिन हमें 7 बजे निकलना था तो हम 6 बजे तक तैयार हो गए। जल्दी निकलने का कारण ये था की रास्ता 2 से 3 घण्टे का था।  मनाली से रोहतांग की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है परन्तु ज्यादा जाम होने की वजह से टाइम ज्यादा लगता है। 





ये दिखा बर्फ से ढका पहाड़ 



सुबह होटल वालो ने फ़ोन किया और हमें रिसेप्शन पर बुलाया , जब हम आ गए तो उन्होंने अपने स्टाफ के साथ हमें गाड़ी के पास भेज दिया जो कि बिल्कुल बस स्टैंड के पास खड़ी थी। 
हमने अपने लिए सीट चुनकर बैठ गए। जब हम गाड़ी के पास पहुंचे तो हमें वहाँ पर कुछ लोग पहले से ही बैठे मिले और कुछ लोग थोड़ी देर के अंदर आ चुके थे। गाड़ी बार  में चल दी और थोड़ी दूर जाकर रुक गयी , ड्राइवर ने बताया की आप यहाँ से अपने लिए कपडे ले लीजिये ऊपर बहुत ठण्ड है।  हम तीनो कपडे लेने के लिए नहीं गए क्योंकि हम लोग पहले से ही फिट होकर आये थे, बाकी सभी ने अपने लिए कपडे ले लिए थे। 
सब के वापस आने के बाद एक बार फिर गाड़ी चलने लगी। 




ये वो गाड़ी है जिसमे हम गए थे। 



इन कपड़ों की जरूरत पड़ती है ऊपर बर्फ में , और ये कपडे किराये पर मिल जाते है। 



आप सोच रहे होंगे कि इस फोटो में क्या खास है लेकिन इस फोटो में एक झरना है जोकि मकान के पीछे वाले पहाड़ पर से बह रहा है। 





एक दूर का झरना ,
 यहाँ के रस्ते बहुत टेढ़े मेढ़े है




 यहाँ पर आप खच्चर की सवारी भी कर सकते हैं 


देखो कितना जाम है यहाँ पर , इसलिए यहाँ पर 50 KM की दूरी 2 घण्टे से ज्यादा समय में पूरी होती है। 




कितना गजब नज़ारा है यहाँ का 


खच्चर पर सवारी करते हुए लोग 



यहाँ पर हर साल बहुत सारे पर्यटक आते है 




ये मोह ही तो है जो हमें यहाँ खिंच लाया 




जितेंद्र कुमार और दीपिका 


अब हम मढ़ी पहुँच चुके थे और हमारी गाड़ी धीरे-धीरे से आगे बढ़ रही थी।  दोनों तरफ बर्फ की दीवार बनी हुयी थी , वाह क्या नज़ारा था वो जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।  अब हमारी गाड़ी एक छोटे से पुल को पार करके आगे जा रुकी, हवा इतनी तेज चल रही थी कि वो पूरी गाड़ी को अपने झोंको से हिला रही थी। 
गाड़ी के अन्दर तो ठण्ड महसूस हो ही रही थी परन्तु जब गाड़ी से बहार निकले तो हालत ख़राब हो गयी।  शीत लहर का नाम ही सुना था अब तक परन्तु उससे पाला पहली बार पड़ा जब हम गाड़ी से बहार उतरे, पहले आये थे तो इतनी तेज़ हवा नहीं चली थी। निचे उतरने पर मैंने अपने मुँह को मंकी कैप से ढक लिया , आपको फोटो में नज़र आ ही जायेगा। थोड़ी देर रुके और फिर बर्फ के ऊपर चलने लगे , मेरी चाल बर्फ के ऊपर कम हो जाती है क्योंकि बर्फ पर फिसलने का दर बना रहता है , फिर भी मैंने हिम्मत दिखाई और बर्फ के ऊपर चलने का प्रयास किया जो कि सफल रहा। 
दोस्तो जब हम कही भी घूमने के लिए जाते है तो हमें वहां से सीखने को बहुत कुछ मिलता है, जैसे कि वातावरण कैसा है , वहाँ के लोग कैसे है , रूल क्या है , रहन सहन कैसा है आदि।  जब हम पहले बर्फीले पहाड़ देखा करते थे तो मन मचल उठता था कि काश मैं भी यहाँ जा पता और फिर भगवान से प्रार्थना भी करता, मैं तो ये ही कहूंगा की भगवन ने मेरी सुन ली और उन्होंने मुझे भ्रमण करने के बहुत सारे अवसर प्रदान किये। 
तो दोस्तो इस यात्रा के भाग में इतना ही कहना चाहूंगा कि घुम्मकड़ी किस्मत से मिलती है तथा जिसे भी इसका मौका मिले छोड़ना मत। 




मैंने कभी नहीं सोचा था की मैं यहाँ आयूंगा कभी , मैं उन लोगो का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जिन्होंने मुझे यहाँ आने का अवसर प्रदान किया। (JITENDRA KUMAR)






I AM HANDICAPPED









मढ़ी की सैर 




ये क्या कह रहे है भाई आप समझ में नहीं आ रहा (ऊपर वाले फोटो में)



ये मेरी छोटी बहन जी है (दीपिका)




बाकी अगले भाग में---------


 धन्यवाद 



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